मिलिए दलित महिला रिपोर्टर से, यह कैमरे से बदल रही है किसानों की जिंदगी

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यह कहानी है उन तीन दलित महिलाओं की जो नल्लमला जंगल के किनारे एक छोटे से गांव में रहती हैं। यहां पर चेंचू जनजाति के लोग रहते हैं। जिंदगी के पांच दशक देख चुकी यहां की तीनों महिलाएं एक मिसाल के तौर पर अपने साथियों को खेती करने और बीज डालने की विधि को वह कैमरे में रिकॉर्ड करती हैं। यह तीनों महिलाएं एक कम्युनिटी मीडिया ट्रस्ट जिसका नाम Sangareddy है और जो ड्रैकन डेवलपमेंट सोसायटी (BDS) पर बेस्ड है के तहत काम करती है।पिछले 30 साल से दलित और हाशिए पर चली गई महिला कृषकों के लिए काम करने वाली संस्था है।

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इस कम्युनिटी मीडिया स्टेशन में करीब 20 महिलाओं की टीम काम करती है। इनका काम खेतों में किसानी कर रहे लोगों की एक्टिविटी को रिकॉर्ड करना है। मानिगरी की चंद्रम्मा, इप्पल पत्ती की मोलम्मा और हमनापुर की लक्षम्मा बी दलित किसान है। लक्षम्मा कहती है कि हम बाजरा, लाल चना बीज वितरण के लिए है। हमारा उद्देश्य अपने साथी किसानों को उन्नत और स्वस्थ तरीके से खेती करना सिखाना है। लक्षम्मा दिहाड़ी मजदूर थी, और एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में यह मालदीव की यात्रा के साथ 15 से ज्यादा देशों की यात्रा भी कर चुकी है। वीडियो बनाने के पीछे इनका उद्देश्य कम पढ़े लिखे किसानों को लेकर है जो वीडियो के जरिए आसानी से खेती की प्रक्रिया को समझ सके। वीडियो में यह महिलाएं पूरी किसानी प्रक्रिया को रिकॉर्ड करती हैं। पढ़ने के सोर्स के रूप में उपयोग कर रहे ढ़ेरों किसानों को लाभ पहुंचा चुकी है।

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कम्युनिटी से ताल्लुक रखने वाली महिलाएं जर्नलिस्ट किसानों से जुड़े हर त्यौहार की रिकॉर्डिंग करती है। इसमें पुराने फसलों के त्योहार Eruvaka Panduaga तथा Patha Pantala Jatara है जो बारिश के मौसम में शुरू होते हैं। इस दौरान लक्षम्मा तथा उसके साथी रिकॉर्डिंग में व्यस्त रहती हैं। दूसरी किसान फिल्म- मेकर मोलम्मा द कहती है, सीनेमेट्रोग्राफी टेक्निक सीखने के बाद उन्हें समाज में बहुत इज्जत मिली। वह भी पहले दिहाड़ी मजदूर और किसान थी लेकिन अब वह प्रोफेशनल फिल्म-मेकर रिपोर्टर हो गई है। जब भी वह कैमरे के साथ निकलती है, लोग उनको सम्मान की दृष्टि से देखते हैं।

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चिन्ना नरसम्मा जो कि अभी कम्युनिटी मीडिया ट्रस्ट की हेड है, कहती है हम अभी वीडियो डायरी प्रोग्राम रन करा रहे हैं। यह सभी वीडियो हम यूट्यूब पर अपलोड करते हैं। रिपोर्ट में सामने आया कि यह 2001 का समय था जब क्षेत्र की महिलाएं अपनी समस्याओं के साथ DDS पहुंची थीं। इस वक्त उन्होंने खुद का मीडिया सेंटर बनाने की बात रखी थी। ये NGO क्षेत्र के 75 गांव में काम कर रही है। यहां की औरतें अब एक दूसरे की परेशानियों को सुनती समझती हैं और उनको हल करने का सब मिलजुलकर भरसक प्रयास करती हैं। इस तरह महिलाओं को सशक्त बनाने का कारवां आगे बढ़ता चला जा रहा है।

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