जमीयत उलेमा ए हिंद के प्रमुख अशरद मदनी ने बाबरी मस्जिद की ओर से दी गई 5 एकड़ जमीन को उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने नहीं लेने की अपील की है। मौलाना अशरद मदनी ने गुरुवार को दिल्ली में जमीयत उलेमा ए हिंद के कार्यालय में पत्रकारों को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह जमीन का मामला नहीं था बल्कि मुस्लिम उम्मा 70 साल से लड़ रही थी।
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने 5 नवंबर को बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि के स्वामित्व वाले भूमि मामले में अयोध्या की 2. 77 एकड़ जमीन हिंदू देवता रामलला को सौंपने का फैसला सुनाया। पांचों न्यायाधीशों वाली संवैधानिक पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह अयोध्या में प्रमुख स्थान में मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन उपलब्ध कराएं। मौलाना मदनी ने बताया कि गुरुवार को जमीयत की आमसभा में फैसला किया जाएगा कि बाबरी मस्जिद राम मंदिर के मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाए या नहीं। उन्होंने कहा यह मुद्दा न केवल जमात से संबंधित है बल्कि पूरे मुस्लिम समुदाय से संबंधित है। इसके लिए जमीयत कोर ग्रुप के देशभर के सभी 21 सदस्य को बुलाया गया है। इस बैठक में सभी सदस्यों और सुप्रीम कोर्ट की राय जानने के बाद ही आगामी रणनीति तैयार की जाएगी।
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय का निर्णय समझ से परे है। सुप्रीम कोर्ट बेंच के जजों ने माना है कि बाबरी मस्जिद किसी मंदिर को गिराकर नहीं बनाई गई थी। मौलाना अशरद मदनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भारत की सबसे ऊंची अदालत है। उन्होंने यह भी कहा कि मस्जिद की शहादत अवैध थी और ऐसा करने वालों ने अपराध किया है। हालांकि उन्होंने इस मामले को अंतरराष्ट्रीय अदालत का दरवाजा खटखटाने से मना किया है। मदनी ने आगे कहा यह मामला सिर्फ मस्जिद का मामला नहीं था बल्कि मुसलमानों के अधिकारों का मामला था। फिर भी जमीन हिंदुओं को सौंप दी हमको समझ नहीं आ रहा ऐसा फैसला क्यों किया गया है। एक मस्जिद हमेशा एक मस्जिद होती है चाहे उसमें कोई नमाज़ पढ़े या नहीं पढ़े।