एक क्रांतिकारी बटक मियां अंसारी जिन्होंने महात्मा गांधी की जान बचाई। वह क्रांतिकारी जिसने अपने बेटे की जान देकर गाँधी जी की जान बचाई। 1917 में जब गांधी जी चंपारण सत्याग्रह पर मोतिहारी में किसानों के बीच गए थे, उनके समर्थन में इतनी भीड़ देखकर अंग्रेजों ने समझौते के लिए गांधीजी को खाने पर बुलाया था। खाना खिलाने का काम बावर्ची बटक मियां अंसारी का था।
बटक मियां ने जैसे ही खाना परोसा और गांधी जी खाना शुरू करने ही वाले थे कि अंसारी ने यह कहते हुए खाना छीन लिया कि इस खाने में जहर है। अंग्रेजों ने कल मेरे बेटे की लाश भिजवाई अगर आज मैंने आपको जहर नहीं दिया तो कल परिवार से कोई दूसरा होगा और वही हुआ गांधीजी के जाने के बाद अंग्रेजों ने उनके घर को तबाह कर दिया। आजादी के बाद जब प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद मोतिहारी पहुंचे तो उनका भाषण सुनने भीड़ के बीच बटक मियां अंसारी भी पहुंचे। डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भीड़ में खड़े बटक मियां को पहचान लिया और स्टेज पर बुलाकर अपने पास बिठाया और कहा कि यह वही शख्स है जिन्होंने अपने परिवार की परवाह किए बिना गांधी जी के हाथ से जहर मिला खाना छीन लिया था और अंग्रेजों ने उनका घर तबाह कर दिया था ।आज मैं राष्ट्रपति बन कर आया हूं और मैं बटक मियां अंसारी को पारितोषिक में 50 एकड़ जमीन मोतिहारी में देना चाहता हूं।
बटक मियां के जीते जी तो उन्हें यह जमीन सरकार से नहीं मिल पाई पता नहीं बाद में घरवालों को मिली या नहीं। यह तो मोतिहारी के लोग या उनके परिवार वाले ही बता सकते हैं।
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